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Saturday, March 28, 2009

दंगा
मंदिर-मस्जिद के झगड़े में
जाने कितने घर जल गए
सैकड़ों निर्दोष हुए हलाल
लाशों के ढेर लग गए ।
कल तक थे जो पड़ोसी
आज बेगाने बन गए
समय के घूमते चक्र में
दोस्त भी अंजाने बन गए ।
बूटे-बूटे पर है पुलिस का पहरा
चौराहे तक पसरा सन्नाटा है गहरा,
नन्हें-मुन्नों की बात न पूछो
बुजुर्गों के माथे भी भूख है ठहरा ।
गली-गली कुत्तों का रोना
रह-रह कानों से टकराता
खाली पत्तलों से खीझ-खीझकर
गश्ती पुलिस पे कुत्ते भौंक-रिरियाता ।
कल तक थे जो अमन के पहरेदार
वे भी आज हिंसक-शैतान बने,
सत्ता मे रहने को जिसने
जयप्रकाश का नाम जपा
दंगाई हिंसा में
सब गोड्से के रंग सने ।
हो सर्वत्र जहाँ मानवता का हिंसक नर्त्तन
चुप बैठे रहना अपनी ही लाश पर है जीना
कब तक खाएँ गम,
जो शोले बरसाते हैं
चलें गाँधी की राह,
जहाँ न पड़े जहर पीना ।
धुँध लांघकर घटाएँ बरसने को आतुर दिखातीं
मंदिर-मस्जिद के गुंबज पर रोशनी चमकतीं
घोर अंधियारी को छ्लांग मानवता सजाएँ
इंसानियत की लहू न सस्ती अब उसे बचाएँ ।