सुबह से शाम तक दौर - घूम रही हूँ
आखिर किसलिए ?
लोग कहते हैं -सब व्यर्थ है - निरर्थेक है
किन्तु - अपने मन का क्या करूँ ?
कैसे समझाऊं ?
इस दौर - धुप को कैसे सार्थक बनाऊं ?
सच है -कुछ खोज रही हूँ
लेकिन क्या ????????????
परिवार है -दोस्त है - घर है- नौकरी है -
सभी साधन तो है --------
तो फिर खोज किसकी ????????????
मन के किसी निविर एकांत कमरे से
आवाज आती है ------------
आखिर शांति किधर है ????????????
मन व्याकुल हो उठता है और लगता है ---------
हम अनजाने ही किसी खोज में निकल परे है -----------
तो फिर शांति किधर है ????
और फिर मन टिक जाता है ----
उस खोज में जहाँ शांति है - सुकून है - आराम है
और फिर ---------------?????
------राधा-------------
1 comment:
good
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